धूमधाम से मनाया गया बाबा नीब करौरी (नीम करोली) महाराज जी के कैंची धाम का स्थापना दिवस। जानिये कैंची धाम और नीम करोली बाबा के बारे में।

विश्व प्रशिद्ध भवाली (नैनीताल) स्थित कैंची धाम मन्दिर (फाइल चित्र)


नैनीताल। आज विश्व प्रशिद्ध कैंची धाम मन्दिर का स्थापना दिवस है, सर्वप्रथम सभी उत्तराखण्ड प्रदेश व देश वासियों को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई। आज कैंची धाम का 57वां स्थपना दिवस धूमधाम से मनाया गया। कैंची धाम मन्दिर के कपाट बन्द होने के कारण श्रधालुओं ने गेट के बाहर से ही मत्था टेका। पूज्य बाबा नीब करौरी महाराज जी के भक्तों ने उत्तराखंड में अलग-अलग स्थानों पर आलू, पुड़ी, हलवा व मालपुये का प्रसाद जरूरतमंद व असहाय लोगों में वितरित किया गया। 

आईये जानते हैं कौन थे नीब करौरी बाबा या नीम करोली बाबा?

पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज जी

    पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज जी को उनके भक्त उनके अपभ्रंश नाम बाबा नीम करौली के नाम से अधिक जानते हैं। बाबा जी का जन्म सन 1900 में अकबरपुर (वर्तमान फर्रुखाबाद) उत्तर प्रदेश के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। बाबा जी का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा है। उनके पिता जी का नाम श्री दुर्गा प्रसाद शर्मा है। 11 वर्ष की अल्पायु में ही महाराज जी का विवाह हो गया था, जिससे उन्हें 02 पुत्र व 01 पुत्री के रूप में कुल 03 संताने हुयी। उनकी संतानों के नाम हैं अनेग सिंह शर्मा, धरम नारायण शर्मा और गिरिजा भटेले। बाबा जी ने विवाह के कुछ वर्षों बाद ही गृह त्याग कर सन्यासी बनाने का निर्णय कर लिया था। वर्षो के तप के बाद नीम करोली बाबा जी को सिध्धियाँ प्राप्त हुयी थीं। उनकी मृत्यु (महाप्रयाण) 11 सितम्बर, 1973 में वृन्दावन के आश्रम में हुयी थी

    महाराज जी हनुमान जी के बहुत बड़े भक्त थे और बाबा जी के भक्त उन्हें साक्षात हनुमान जी का अवतार मानते थे। नीम करोली महराज जी ने 1964 में 15 जून के दिन ही भवाली (नैनीताल) में कैंची क्षेत्र में स्थित अपने आश्रम में श्री हनुमान जी की मूर्ति स्थापित की थी। आगे चलकर यही मन्दिर परिसर व आश्रम बाबा जी के चमत्कारों व सेवा कार्यों के चलते विश्व प्रसिद्ध तीर्थ `कैंची धाम`बना।  

कैंची धाम मन्दिर देवभूमि उत्तराखण्ड का एक ऐसा मन्दिर है, जहाँ प्रसाद बनाने के लिए भी कठिन 'तप' करना पड़ता है।


कैंची धाम मेले का महाप्रसाद मालपुये। 

    प्रतिष्ठा दिवस के दिन 15 जून को कैंची धाम में मेले का आयोजन होता है। इस कैंची मेले में मालपुये को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। मालपुये बनाने का काम 12 जून से ही शुरू हो जाता है। शुद्ध देशी घी से बने मालपुये बनाने के लिये यहाँ कुछ विशेष नियम हैं, साथ ही इन नियमों का पालन करना आवश्यक है और यह नियम किसी तप से कम नहीं होते हैं।

क्या हैं मन्दिर प्रांगण में मालपुये का प्रसाद बनाने वालों के लिये नियम:-

  • प्रसाद बनाने में वही श्रद्धालु भाग ले सकते हैं,जो व्रत लेकर आये हों।
  • प्रसाद बनाते समय धोती, कुर्ता धारण करना अनिवार्य है।
  • जिसके द्वारा प्रसाद बनने की अवधि में लगातार हनुमान चालीसा का पाठ किया जा रहा हो।

    15 जून से तीन दिन पहले 12 जून से ही कैंची धाम मन्दिर परिसर में लगातार प्रसाद बनाने का कार्य शुरू हो जाता है। प्रसाद के रूप में मालपुये बांटने की इच्छा स्वयं बाबा नीब करौरी महाराज जी की ही थी। इसलिये यहाँ महाप्रसाद के रूप में भक्तों को मालपुये वितरित किये जाते हैं। प्रसाद की शुद्धता को देखते हुये वही श्रद्धालु प्रसाद बनाने में भागीदारी करते हैं, जो कि इस दौरान उपवास पर रहते हैं। बारी-बारी से श्रद्धालु प्रसाद बनाने में अपनी भागीदारी करते हैं। मालपुये बनाने के बाद, उन्हें पेटियों और डालियों में रख दिया जाता है। 15 जून को बाबा को भोग लगाने के बाद ही इसे प्रसाद के रूप में सभी भक्तों को बांटा जाता है। कैंची मन्दिर के प्रसाद की महत्ता इतनी है, कि इसे पाने के लिए लोग दूर-दूर से यहाँ मन्दिर में पहुंचते हैं। इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते सीमित संख्या में भक्तजन यह प्रसाद ग्रहण कर पाये। 

    लगातार दूसरे साल इस बार भी COVID-19 के कारण कैंची धाम में परम पूज्य बाबा नीब करौरी महाराज जी के हनुमान मंदिर के गेट मंगलवार 15 जून, 2021 को होने वाले स्थापना दिवस (प्रतिष्ठा दिवस) पर भक्तों व श्रद्धालुओं के लिये नहीं खुलेंगे।

परम पूज्य बाबा श्री नीब करौरी महाराज ने 15 जून, 1964 में उत्तराखण्ड राज्य के नैनीताल जिले में एक हनुमान मंदिर की स्थापना की थी। जो कि आज पूरे विश्व में कैंची धाम के नाम से प्रसिद्ध है।

    पिछले 50 वर्षों से अधिक समय से कैंची धाम का स्थापना दिवस बाबा के श्रद्धालुओं के लिए एक खास मौका रहता है। जहाँ इसकी तैयारियां कई दिनों पहले ही शुरू हो जाती है। इस दिन यहां हर साल भंडारा, सार्वजनिक दावतें और विशेष 'प्रसाद' का वितरण हुआ करता था। लेकिन इस बार स्थापना दिवस से एक दिन पहले मंदिर के गेट बंद हैं और वहां सन्नाटा पसरा हुआ है।

    हर साल स्थापना दिवस के लिये श्रद्धालु पहले से ही समारोह की तैयारियां शुरू कर देते हैं। उत्तराखण्ड उच्च न्यायालय के आदेश के मद्देनजर कोरोना महामारी के प्रसार को रोकने के लिए मंदिर के गेट स्थापना दिवस से कुछ दिन पहले ही बंद कर दिये गये हैं।

भवाली (नैनीताल) स्थित कैंची धाम मन्दिर के गेट भले ही बंद हों, लेकिन नीब करौरी महाराज जी के शिष्य इन दिनों भी कई स्थानों पर जरूरतमंदों लोगों के लिये भण्डारे का आयोजन कर भोजन आदि का वितरण कर रहे हैं। बाबा के एक शिष्य ने बताया कि Corona महामारी के इस कठिन समय में हम अस्पतालों में भंडारे आयोजित कर रहे हैं ताकि लोगों को महाराज जी का आशीर्वाद मिल जाये।

नीब करौरी बाबा जी एप्पल कंपनी के सह संस्थापक स्टीव जॉब्स, फेसबुक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक मार्क जुकरबर्ग, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु, ग्रैमी अवार्ड के लिए नामांकित गायक जय उत्तल और हॉलीवुड की प्रसिद्ध अभिनेत्री जूलिया राबर्टस जैसी बड़ी हस्तियों के प्रेरणास्रोत रहे हैं।

    कैंची धाम मंदिर ट्रस्ट के पास उपलब्ध रिकार्ड बताते हैं कि बचपन से संन्यासी बनने का सपना पाल रहे स्टीव जॉब्स ने बाबा नीब करौरी के बारे में जानने के बाद अपना इरादा बदल दिया जो न केवल संन्यास बल्कि मानवता की सेवा के लिए कर्म में भी विश्वास रखते थे ।

    बाबा नीम करौली के शिष्य बताते हैं कि स्टीव जॉब्स 1974 में एक आध्यात्मिक गुरू की तलाश में भारत आये थे और जब वह बाबा नीब करौरी जी के शिष्यों के संपर्क में आये तो उन्होंने अपने सन्यास का इरादा जताया। लेकिन महाराज जी के उपदेश सुन के स्टीव जॉब्स ने संन्यास का अपना इरादा बदल दिया था।

    बाबा के एक शिष्य और वृंदावन स्कूल के आलोक शाह ने बताया कि डॉ० रिचर्ड अल्प्रेट, जिन्हें बाबा ने रामदास नाम दिया था, एक बहुत लोकप्रिय आध्यात्मिक गुरू हैं और उनके अनुयायी अमेरिका, कनाडा और यूरोप भर में फैले हुये हैं। उन्होंने बताया कि रामदास नीब करौरी बाबा और बाबा के विदेशी अनुयायियों के बीच की कड़ी थे। जबकि के०के० शाह इनके बीच एक इंटरप्रेटर (दुभाषिये) की भूमिका निभाते थे। स्टीव जाब्स इन दोनों के काफी नजदीकी थे और हमेशा संपर्क में रहते थे।

    महाराज के एक और शिष्य डॉ० लैरी ब्रिलिएंट हैं। जिन्हें दुनियाभर में चेचक उन्मूलन का श्रेय दिया जाता है। ब्रिलिएंट ने बाबा नीब करौरी महाराज के आश्रम में पढ़ते हुये भारत में कई वर्ष गुजारे थे। महाराज जी ने उनका नामकरण सुब्रमण्यम किया था और उनकी ही सलाह पर ब्रिलिएंट ने चेचक उन्मूलन का चुनौतीपूर्ण कार्य करने का बीड़ा उठाया।

    महाराज जी के साथ ब्रिलिएंट की मुलाकात का यह विवरण 'मिरेकल्स आफ लव' नामक पुस्तक में भी मिलता है जिसमें उन्होंने खुद इस बारे में वर्णन किया है।

बाबा नीब करौरी की कृपा हम सब पर बनी रहे। ऊँ हनुमंते नम:। 

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