उत्तराखंड के चम्पावत जिले में स्थित पूर्णागिरी मंदिर, जो समुद्रतल से लगभग 3000 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है, एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है और इसे 108 सिद्ध पीठों में से एक माना जाता है। यह मंदिर शारदा नदी के किनारे स्थित है और इसके बारे में मान्यता है कि यहाँ देवी सती की नाभि गिरी थी। मंदिर को पुण्यगिरि के नाम से भी जाना जाता है और यहाँ का वातावरण बहुत ही शांति और दिव्यता से भरपूर है।
पूर्णागिरी मंदिर का महात्म
पूर्णागिरी मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले में स्थित है, जो देवी सती के नाभि गिरने के स्थल के रूप में प्रसिद्ध है। इसे शक्तिपीठ माना जाता है और यहाँ भक्तों का मानना है कि माँ पूर्णागिरी की उपासना से जीवन के सारे दुख समाप्त हो जाते हैं और मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। यह मंदिर विशेष रूप से शारदा नदी के किनारे और अन्नपूर्णा पर्वत की ऊँचाई पर स्थित है, जहाँ से दूर-दूर तक का दृश्य देखा जा सकता है।
माँ सती की कहानी से पूर्णागिरी का संबंध
किंवदंती के अनुसार, जब भगवान शिव अपनी पत्नी सती के शव को लेकर घूम रहे थे, तब देवी सती के शरीर के विभिन्न अंग विभिन्न स्थानों पर गिरे। इन स्थानों को शक्तिपीठ कहा जाता है। इसी तरह देवी सती की नाभि यहाँ गिरी थी, और तभी से इसे एक प्रमुख शक्तिपीठ माना जाता है। यहाँ पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन में सुख-शांति का वास होता है।
अन्नपूर्णा पर्वत पर बसी माँ पूर्णागिरी तक पहुँचने का मार्ग
पूर्णागिरी मंदिर तक पहुँचने के लिए श्रद्धालुओं को कठिन चढ़ाई करनी होती है। यह मंदिर अन्नपूर्णा पर्वत की एक ऊँचाई पर स्थित है, और यहाँ तक पहुँचने के लिए पैदल यात्रा करनी होती है। रास्ते में मंदिरों और दर्शनीय स्थानों के दर्शन होते हैं। श्रद्धालु टनकपुर से लगभग 17 किमी दूर इस मंदिर तक पैदल पहुँच सकते हैं, जहाँ सुंदर प्राकृतिक दृश्य और वातावरण का अनुभव होता है। यहाँ तक पहुँचने के लिए मार्ग में कई चढ़ाई के बिंदु आते हैं, जहाँ भक्तों को अपनी श्रद्धा और साहस के साथ यात्रा पूरी करनी होती है। वर्तमान समय में ठुलीगाढ़ तक आप गाड़ी के माध्यम से भी पहुँच सकते हैं ।
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